पाठ 7
हम भी सीखें
—गोपाल कृष्ण कौल
MP Board Class 8 Hindi Sugam Bharti Chapter 7 Hum Bhi Seekhen
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Textual Exercise
नए शब्द
कुदरत= प्रकृति !जंग -हित = संसार के कल्याण के लिए !
तरु = पेड़ !
तरु = पेड़ !
निखरता = निर्मल या साफ होना , चमकना !
सोत= झरना !
सोत= झरना !
जनक =जन्म देने वाला !
महकना = सुगंध देना !
विचरना = घूमना-फिरना !
प्रमुख पद्यांशों की संदर्भ - प्रसंग सहित व्याख्याएँ
1. कुदरत हमको............................मरना सीखें !
शब्दार्थ= कुदरत –प्रकृति ! जन-हित – संसार की भलाई !औरों– दूसरों ! हित– के लिए !
संदर्भ= प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिन्दी सामान्य ) के भाग -8 के पाठ -7 ‘हम भी सीखें’ से ली गई हैं ! इन पंक्तियों के कवि श्री गोपाल कृष्ण कौल हैं !
प्रसंग = प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति से प्रेरणा लेने का उपदेश देते हुए कहा है कि—
व्याख्या= प्रकृति हमें यह रोज-ही-रोज पाठ पढ़ाती रहती है कि हम संसार में एक खास उद्देश्य है आए हैं ! वह यह कि हम संसार के लिए कुछ करना सीखें ! यह तो हम जानते हैं कि अपनी भलाई के लिए तो सभी कुछ-न-कुछ करते रहते हैं ! लेकिन दूसरों की भलाई के लिए शायद ही कोई कुछ करता है ! इसलिए हमें प्रकृति की तरह दूसरों की भलाई के लिए अपने जीवन को लगाना चाहिए !
विशेष= 1. परोपकार करने की सीख दी गई है !
2. तुकांत शब्दावली है !
2. सूरज हमें …………………………………… हरना सीखें !
शब्दार्थ = रोशनी-प्रकाश ! शीतलता-ठंढ़क, आनंद !
संदर्भ = पूर्ववत् !
प्रसंग = प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सूरज,तारे, चाँद, बादल और जुगनू से परोपकार करने की प्रेरणा लेने की सीख देते हुए कहा है कि—
व्याख्या= सूरज हमें रोशनी (प्रकाश) देकर जीवन प्रदान करता है, तो तारे हमें शीतलता प्रदान करते हैं ! इसी प्रकार चाँद अपनी किरणों से हमें अमृत प्रदान करता है, तो बादल जल की बरसा कर हमारी आवश्यकताओं को पूरा करते है ! जुगनू भले ही थोड़ी-थोड़ी और कहीं-कहीं रोशनी करता है , फिर भी वह अंधकार को दूर करने में लगा ही रहता है ! इस प्रकार प्रकृति के इन स्वरुपों से प्रेरणा लेकर हमें भी परोपकार करना चाहिए !
विशेष= 1. परोपकार करने की सीख आकर्षक रूप में है!
2. उदाहरण शैली है !
3. बिन अभिमान …………………………………………निखरना सीखें !
शब्दार्थ= अभिमान- घमंड ! बिन - बिना, अकारण !
न्यौछावर-त्याग ! काया-शरीर!
दधीचि - एक पौराणिक कथा के अनुसार दधीचि ऋषि ने अस्र बनाने के लिए अपनी हड्डियाँ तक देवताओ को दान कर दी थी ! इन हड्डियों से वज्र बनाया गया जिससे इंद्र ने राक्षसों को परास्त किया !
संदर्भ= पूर्ववत् !
प्रसंग= प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति की ही बिना किसी घमंड करके परोपकार करने की सीख देते हुए कहा है कि–
व्याख्या= हम यह रोज ही देखते हैं कि पेड़-पौधे बिना किसी घमंड के ही हमे बीज, फूल और फल देते रहते हैं ! यही नहीं वे बड़ी सुखद ठंडी छाया भी हमें देते रहते हैं ! इसी प्रकार वे महर्षि दधीचि की तरह हरेक समय में अपना सब कुछ परोपकार में लगाते रहते हैं! मौसम चाहे जो कुछ भी बुरा और खराब क्यों न हो हमें तो पेड़ की तरह ही परोपकार करना नहीं भूलना चाहिए !
विशेष= 1. पेड़-पौधों की तुलना महर्षि दधीचि से की गई है !
2. लय और संगीत का सुंदर मेल है !
4. गहरी नदियाँ ……………………………………………झरना सीखें !
शब्दार्थ = निर्झर - झरने ! निर्मल-स्वच्छ ! स्रोतों-झरनों !
जनक -पिता , जन्म देने वाला !
संदर्भ = पूर्ववत् !
प्रसंग= प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने गहरी नदियों,नालों और झरनों के त्याग को बतलाते हुए कहा है कि–
व्याख्या = बड़ी-बड़ी नदियाँ, नाले और झरने रात -दिन दूसरों के लिए ही साफ और सुंदर जल बहाते रहते हैं ! इनको जन्म देने वाले बड़े-बड़े ऊँचे-ऊँचे पर्वत ही तो है ! इनकी तरह त्यागी -बलिदानी बनकर हम दूसरों को सुख और जीवन देने के लिए अपने जीवन-रस की एक-एक बूँद को टपकाते रहना चाहिए !
विशेष= 1. हमेशा ही परोपकार करते रहने की सीख दी गयी है !
2. भाषा सरल है !
5. सबका पालन …………………………………….…विचरना सीखें !
शब्दार्थ = उगाती - पैदा करती ! उथल -पुथल – उलट -पुलट, हेर - फेर ! महकाती - सुगंध देती ! प्राणवायु - संजीवनी !
विचरना -घूमना , फिरना !
संदर्भ= पूर्ववत् !
प्रसंग = प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने धरती को माँ के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा है कि—
व्याख्या = धरती सचमुच मे प्यारी माँ की तरह है ! यह सबका पालन-पोषण करने के लिए ही तरह - तरह के अनाज को पैदा करती है ! जब कभी कोई उलट- फेर अर्थात् कठिन और दुखद घटना होती है , उसे यह स्वयं ही सह लेती हैं ! लेकिन सबके जीवन की फुलवारी को सुगंधित करने से नहीं रूकती है ! इस प्रकार यह सबको हमेशा ही संजीवनी देती रहती है ! हमें चारों ओर स्वतंत्र रुप से विचरने-घूमने की शिक्षा इससे अवश्य लेनी चाहिए !
विशेष = 1. धरती को प्यारी माँ की तरह महत्व दिया गया है !
2. यह अंश उपदेशात्मक है !
अनुभव विस्तार
प्रश्न 1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न–
(क) सही जोड़ी बनाइए–
(अ) सूरज हमें रोशनी देता - 1. निर्मल जल दिन-रात बहाते
(ब) बिन अभिमान पेड़ देते हैं - 2. अन्न उगाती धरती प्यारी
(स) गहरी नदियाँ,निर्झर नाले - 3. बीज , फल ,फूल ,ठण्डी छाया
(द) सबका पालन करने वाली - 4. तारे शीतलता बरसाते
उत्तर = (अ) 1, (ब) 2, (स) 3,(द) 4 !
(ख) दिए गए विकल्पों से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए–
(अ) अपने लिए सभी जीते है ……………………………मरना सीखें !
(औरों के हित , दूसरों के हित )
(ब) चाँद बाँटता………………………………सबको ,बादल वर्षा जल दे जाते ! (अमृत, चाँदनी)
(स) ऊँचे- नीचे ………………………ही तो, इन स्रोतों के जनक कहाते !
(पहाड़, पर्वत)
(द) ऐसे ही त्यागी बनकर हम, बूँद-बूँद कर ……………सीखें !
(घटना, झरना) !
उत्तर= (अ) औरों के हित, (ब) अमृत, (स) पर्वत, (द) झरना !
प्रश्न 2. अति लघु उत्तरीय प्रश्न –
(अ) कुदरत हमें क्या सिखाती है ?
(ब) तारे हमें क्या देते हैं ?
(स) धरती क्या कार्य करती हैं ?
उत्तर= (अ) कुदरत हमें परोपकार करना सिखाती है !
(ब) तारे हमें शीतलता देते हैं !
(स) धरती सबका पालन-पोषण करती है !
प्रश्न 3. लघु उत्तरीय प्रश्न—
(अ) पर्वतों को सोतों का जनक क्यों कहा गया है ?
उत्तर= पर्वतों से बड़ी-बड़ी गहरी नदियाँ निकलती हैं ! पर्वतों से कई प्रकार के छोटे-बड़े झरने निकलते हैं ! यही नहीं पर्वतों से ही कई प्रकार के छोटे-बड़े नाले निकलते हैं ! इन नदियों, झरनों और नालों में रात-दिन स्वच्छ जल बहता रहता है ! इस प्रकार पर्वतों से नदियों, झरनों और नालों के निकलने के कारण पर्वतों को इनका जनक कहा गया है !
(ब) पेड़ो को दधीचि क्यों माना गया है ?
उत्तर= पेड़ हर युग में अपना सब कुछ न्यौछावर परोपकार के लिए करते रहते हैं ! चाहे कोई मौसम अर्थात् कठिन समय क्यों न हो, वे परोपकार करने से पीछे नहीं हटते हैं ! चूँकि इनका त्याग-बलिदान महर्षि दधीचि के ही समान होता है ! इसलिए उन्हें महर्षि दधीचि माना गया है !
(स) जुगनू से हमें क्या सीख मिलती है ?
उत्तर= यद्यपि जुगनू आकर-प्रकार में बहुत ही छोटा होता है ! फिर भी हमें रोशनी थोड़ा-थोड़ा करके ही सही, देने से कभी पीछे नहीं हटता
है ! इस प्रकार वह अंधकार को दूर करके हमें प्रकाश देने में लगा रहता है ! फलस्वरूप हमें उससे यह सीख मिलती है कि परोपकार करने के लिए बड़े-छोटे का महत्व नहीं होता है ! दूसरी बात यह कि हमें जितना भी हो सके, परोपकार करते ही रहना चाहिए !
भाषा की बात
प्रश्न 1. बोलिए और लिखिए –
कुदरत, अमृत , दधीचि ,निर्मल , पर्वत , त्यागी !
प्रश्न 2. सही वर्तनी वाले शब्दों पर गोला लगाइए–
1. सिखती ,सखाती , सिखाती , सीखाति
2. वरषा , वर्रषा , वर्षा ,वार्ष
3. जुगनू, जुगन , जुगुन , जूगनू
4. अंधकर , अंधाकर ,अंधकार , अधंकारा !
उत्तर= सही वर्तनी —
1. सिखाती , 2. वर्षा , 3. जुगनू , 4. अंधकार !
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों में उचित स्थान पर अनुनासिक के चिह्न (ँ) का प्रयोग कीजिए –
माग , टाग , जाच , तागा , ऊट , नदिया, बाटना !
उत्तर = माँग, टाँग , जाँच , ताँगा, ऊँट , नदियाँ , बाँटना !
प्रश्न 4. कोष्ठक में दिए गए शब्द की आवृति से शब्द बनाकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
…………………चलता भैया ! (आगे)
…………………आई भैया ! (पीछे)
………………..लो घास खिलाई ! (हरी)
……………….उसने वह खाई ! (खुशी)
उत्तर= आगे-आगे चलता भैया !
पीछे-पीछे आई गैया !
हरी-हरी लो घास खिलाई !
खुशी-खुशी उसने वह खाई !
प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थी शब्द लिखिए –
अग्रज , सुगंध , आदि ,आदान !
उत्तर= शब्द विपरीतार्थी शब्द
अग्रज अनुज
सुगंध दुर्गध
आदि अंत
आदान प्रदान
प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों में ‘अभि’ उपसर्ग का प्रयोग करते हुए नए शब्द बनाइए–
ज्ञान, नंदन ,यान ,रुचि , नेता , मत
उत्तर= उपसर्ग मूल शब्द नया शब्द
अभि ज्ञान अभिज्ञान
अभि नंदन अभिनंदन
अभि यान अभियान
अभि रुचि अभिरुचि
अभि नेता अभिनेता
अभि मत अभिमत
विचरना = घूमना-फिरना !
प्रमुख पद्यांशों की संदर्भ - प्रसंग सहित व्याख्याएँ
1. कुदरत हमको............................मरना सीखें !
शब्दार्थ= कुदरत –प्रकृति ! जन-हित – संसार की भलाई !औरों– दूसरों ! हित– के लिए !
संदर्भ= प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिन्दी सामान्य ) के भाग -8 के पाठ -7 ‘हम भी सीखें’ से ली गई हैं ! इन पंक्तियों के कवि श्री गोपाल कृष्ण कौल हैं !
प्रसंग = प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति से प्रेरणा लेने का उपदेश देते हुए कहा है कि—
व्याख्या= प्रकृति हमें यह रोज-ही-रोज पाठ पढ़ाती रहती है कि हम संसार में एक खास उद्देश्य है आए हैं ! वह यह कि हम संसार के लिए कुछ करना सीखें ! यह तो हम जानते हैं कि अपनी भलाई के लिए तो सभी कुछ-न-कुछ करते रहते हैं ! लेकिन दूसरों की भलाई के लिए शायद ही कोई कुछ करता है ! इसलिए हमें प्रकृति की तरह दूसरों की भलाई के लिए अपने जीवन को लगाना चाहिए !
विशेष= 1. परोपकार करने की सीख दी गई है !
2. तुकांत शब्दावली है !
2. सूरज हमें …………………………………… हरना सीखें !
शब्दार्थ = रोशनी-प्रकाश ! शीतलता-ठंढ़क, आनंद !
संदर्भ = पूर्ववत् !
प्रसंग = प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सूरज,तारे, चाँद, बादल और जुगनू से परोपकार करने की प्रेरणा लेने की सीख देते हुए कहा है कि—
व्याख्या= सूरज हमें रोशनी (प्रकाश) देकर जीवन प्रदान करता है, तो तारे हमें शीतलता प्रदान करते हैं ! इसी प्रकार चाँद अपनी किरणों से हमें अमृत प्रदान करता है, तो बादल जल की बरसा कर हमारी आवश्यकताओं को पूरा करते है ! जुगनू भले ही थोड़ी-थोड़ी और कहीं-कहीं रोशनी करता है , फिर भी वह अंधकार को दूर करने में लगा ही रहता है ! इस प्रकार प्रकृति के इन स्वरुपों से प्रेरणा लेकर हमें भी परोपकार करना चाहिए !
विशेष= 1. परोपकार करने की सीख आकर्षक रूप में है!
2. उदाहरण शैली है !
3. बिन अभिमान …………………………………………निखरना सीखें !
शब्दार्थ= अभिमान- घमंड ! बिन - बिना, अकारण !
न्यौछावर-त्याग ! काया-शरीर!
दधीचि - एक पौराणिक कथा के अनुसार दधीचि ऋषि ने अस्र बनाने के लिए अपनी हड्डियाँ तक देवताओ को दान कर दी थी ! इन हड्डियों से वज्र बनाया गया जिससे इंद्र ने राक्षसों को परास्त किया !
संदर्भ= पूर्ववत् !
प्रसंग= प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति की ही बिना किसी घमंड करके परोपकार करने की सीख देते हुए कहा है कि–
व्याख्या= हम यह रोज ही देखते हैं कि पेड़-पौधे बिना किसी घमंड के ही हमे बीज, फूल और फल देते रहते हैं ! यही नहीं वे बड़ी सुखद ठंडी छाया भी हमें देते रहते हैं ! इसी प्रकार वे महर्षि दधीचि की तरह हरेक समय में अपना सब कुछ परोपकार में लगाते रहते हैं! मौसम चाहे जो कुछ भी बुरा और खराब क्यों न हो हमें तो पेड़ की तरह ही परोपकार करना नहीं भूलना चाहिए !
विशेष= 1. पेड़-पौधों की तुलना महर्षि दधीचि से की गई है !
2. लय और संगीत का सुंदर मेल है !
4. गहरी नदियाँ ……………………………………………झरना सीखें !
शब्दार्थ = निर्झर - झरने ! निर्मल-स्वच्छ ! स्रोतों-झरनों !
जनक -पिता , जन्म देने वाला !
संदर्भ = पूर्ववत् !
प्रसंग= प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने गहरी नदियों,नालों और झरनों के त्याग को बतलाते हुए कहा है कि–
व्याख्या = बड़ी-बड़ी नदियाँ, नाले और झरने रात -दिन दूसरों के लिए ही साफ और सुंदर जल बहाते रहते हैं ! इनको जन्म देने वाले बड़े-बड़े ऊँचे-ऊँचे पर्वत ही तो है ! इनकी तरह त्यागी -बलिदानी बनकर हम दूसरों को सुख और जीवन देने के लिए अपने जीवन-रस की एक-एक बूँद को टपकाते रहना चाहिए !
विशेष= 1. हमेशा ही परोपकार करते रहने की सीख दी गयी है !
2. भाषा सरल है !
5. सबका पालन …………………………………….…विचरना सीखें !
शब्दार्थ = उगाती - पैदा करती ! उथल -पुथल – उलट -पुलट, हेर - फेर ! महकाती - सुगंध देती ! प्राणवायु - संजीवनी !
विचरना -घूमना , फिरना !
संदर्भ= पूर्ववत् !
प्रसंग = प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने धरती को माँ के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा है कि—
व्याख्या = धरती सचमुच मे प्यारी माँ की तरह है ! यह सबका पालन-पोषण करने के लिए ही तरह - तरह के अनाज को पैदा करती है ! जब कभी कोई उलट- फेर अर्थात् कठिन और दुखद घटना होती है , उसे यह स्वयं ही सह लेती हैं ! लेकिन सबके जीवन की फुलवारी को सुगंधित करने से नहीं रूकती है ! इस प्रकार यह सबको हमेशा ही संजीवनी देती रहती है ! हमें चारों ओर स्वतंत्र रुप से विचरने-घूमने की शिक्षा इससे अवश्य लेनी चाहिए !
विशेष = 1. धरती को प्यारी माँ की तरह महत्व दिया गया है !
2. यह अंश उपदेशात्मक है !
अनुभव विस्तार
प्रश्न 1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न–
(क) सही जोड़ी बनाइए–
(अ) सूरज हमें रोशनी देता - 1. निर्मल जल दिन-रात बहाते
(ब) बिन अभिमान पेड़ देते हैं - 2. अन्न उगाती धरती प्यारी
(स) गहरी नदियाँ,निर्झर नाले - 3. बीज , फल ,फूल ,ठण्डी छाया
(द) सबका पालन करने वाली - 4. तारे शीतलता बरसाते
उत्तर = (अ) 1, (ब) 2, (स) 3,(द) 4 !
(ख) दिए गए विकल्पों से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए–
(अ) अपने लिए सभी जीते है ……………………………मरना सीखें !
(औरों के हित , दूसरों के हित )
(ब) चाँद बाँटता………………………………सबको ,बादल वर्षा जल दे जाते ! (अमृत, चाँदनी)
(स) ऊँचे- नीचे ………………………ही तो, इन स्रोतों के जनक कहाते !
(पहाड़, पर्वत)
(द) ऐसे ही त्यागी बनकर हम, बूँद-बूँद कर ……………सीखें !
(घटना, झरना) !
उत्तर= (अ) औरों के हित, (ब) अमृत, (स) पर्वत, (द) झरना !
प्रश्न 2. अति लघु उत्तरीय प्रश्न –
(अ) कुदरत हमें क्या सिखाती है ?
(ब) तारे हमें क्या देते हैं ?
(स) धरती क्या कार्य करती हैं ?
उत्तर= (अ) कुदरत हमें परोपकार करना सिखाती है !
(ब) तारे हमें शीतलता देते हैं !
(स) धरती सबका पालन-पोषण करती है !
प्रश्न 3. लघु उत्तरीय प्रश्न—
(अ) पर्वतों को सोतों का जनक क्यों कहा गया है ?
उत्तर= पर्वतों से बड़ी-बड़ी गहरी नदियाँ निकलती हैं ! पर्वतों से कई प्रकार के छोटे-बड़े झरने निकलते हैं ! यही नहीं पर्वतों से ही कई प्रकार के छोटे-बड़े नाले निकलते हैं ! इन नदियों, झरनों और नालों में रात-दिन स्वच्छ जल बहता रहता है ! इस प्रकार पर्वतों से नदियों, झरनों और नालों के निकलने के कारण पर्वतों को इनका जनक कहा गया है !
(ब) पेड़ो को दधीचि क्यों माना गया है ?
उत्तर= पेड़ हर युग में अपना सब कुछ न्यौछावर परोपकार के लिए करते रहते हैं ! चाहे कोई मौसम अर्थात् कठिन समय क्यों न हो, वे परोपकार करने से पीछे नहीं हटते हैं ! चूँकि इनका त्याग-बलिदान महर्षि दधीचि के ही समान होता है ! इसलिए उन्हें महर्षि दधीचि माना गया है !
(स) जुगनू से हमें क्या सीख मिलती है ?
उत्तर= यद्यपि जुगनू आकर-प्रकार में बहुत ही छोटा होता है ! फिर भी हमें रोशनी थोड़ा-थोड़ा करके ही सही, देने से कभी पीछे नहीं हटता
है ! इस प्रकार वह अंधकार को दूर करके हमें प्रकाश देने में लगा रहता है ! फलस्वरूप हमें उससे यह सीख मिलती है कि परोपकार करने के लिए बड़े-छोटे का महत्व नहीं होता है ! दूसरी बात यह कि हमें जितना भी हो सके, परोपकार करते ही रहना चाहिए !
भाषा की बात
प्रश्न 1. बोलिए और लिखिए –
कुदरत, अमृत , दधीचि ,निर्मल , पर्वत , त्यागी !
प्रश्न 2. सही वर्तनी वाले शब्दों पर गोला लगाइए–
1. सिखती ,सखाती , सिखाती , सीखाति
2. वरषा , वर्रषा , वर्षा ,वार्ष
3. जुगनू, जुगन , जुगुन , जूगनू
4. अंधकर , अंधाकर ,अंधकार , अधंकारा !
उत्तर= सही वर्तनी —
1. सिखाती , 2. वर्षा , 3. जुगनू , 4. अंधकार !
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों में उचित स्थान पर अनुनासिक के चिह्न (ँ) का प्रयोग कीजिए –
माग , टाग , जाच , तागा , ऊट , नदिया, बाटना !
उत्तर = माँग, टाँग , जाँच , ताँगा, ऊँट , नदियाँ , बाँटना !
प्रश्न 4. कोष्ठक में दिए गए शब्द की आवृति से शब्द बनाकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
…………………चलता भैया ! (आगे)
…………………आई भैया ! (पीछे)
………………..लो घास खिलाई ! (हरी)
……………….उसने वह खाई ! (खुशी)
उत्तर= आगे-आगे चलता भैया !
पीछे-पीछे आई गैया !
हरी-हरी लो घास खिलाई !
खुशी-खुशी उसने वह खाई !
प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थी शब्द लिखिए –
अग्रज , सुगंध , आदि ,आदान !
उत्तर= शब्द विपरीतार्थी शब्द
अग्रज अनुज
सुगंध दुर्गध
आदि अंत
आदान प्रदान
प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों में ‘अभि’ उपसर्ग का प्रयोग करते हुए नए शब्द बनाइए–
ज्ञान, नंदन ,यान ,रुचि , नेता , मत
उत्तर= उपसर्ग मूल शब्द नया शब्द
अभि ज्ञान अभिज्ञान
अभि नंदन अभिनंदन
अभि यान अभियान
अभि रुचि अभिरुचि
अभि नेता अभिनेता
अभि मत अभिमत